खुद को आजमाना चाहता हूँ

आज फिर मैं खुद को आजमाना चाहता हूँ
इन हवाओं से नजर मिलाना चाहता हूँ |

आज भी टीस बाकी है मेरे दिल में इनसे हार जाने की
इसलिए खुद को भी मिटाकर जीत जाना चाहता हूँ|

आज डर नहीं मुझको यहाँ अब डूब जाने का
इस समंदर से कोई मोती चुराना चाहता हूँ |

जरा सा इल्म तो है मुझको तूफानों की ताकत का
मगर फिर भी मैं इनमें एक रास्ता बनाना चाहता हूँ |

लोग कहते हैं बहुत दूर है चाँद इस जमीं से
मगर मैं चाँद को हथेली पर सजाना चाहता हूँ |

इन अँधेरी रातों ने मुझे सिखलाया है बहुत कुछ
उजाला एक अब सूरज को देना चाहता हूँ |

दोस्तों अभी तक तो मेरे कदम जमीं पर हैं मगर
आसमानों पर एक आशियाँ बनाना चाहता हूँ |

(Written by my friend ‘Sagar’)

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